30.3.06

ठहर जाना

ठहरे हुए लम्हों में
अरमानों का ठहर जाना;
तनहाई में, बेबसी में
आँसुओं का ठहर जाना;
कैसा इत्तफाक है
ग़मगीन लम्हों में
दिल के किसी कोनें में ही
गमों का ठहर जाना ।


सीमा
१४ अप्रैल, १९९६

24.3.06

सन्नाटा

सन्नाटे की बात पर कुछ पंक्तियाँ और भी :-

सन्नाटे को
कर लूँ बंद
मैं मुठ्ठी में
बार - बार क्यों
ऐसी ख्वाहिश होती है ?

अन्धकार पर
कर लूँ कब्जा
मन की क्यों
ऐसी कोशिश होती है ?

- सीमा
१७/०२/०३, दि.

22.3.06

सन्नाटे की आवाज

सन्नाटे की भी
अपनी एक आवाज होती है
जो बिना बोले भी
बहुत कुछ बोलती है,
पूछती है,
फुसफुसाती है,
गुनगुनाती है ।


अपने दोनों कानों को
दोनों हाथों से
बंद कर लो,
कुछ मत बोलो
और सुनो
सन्नाटे की सरसराहाट,
सन्नाटे की गूँज,
सन्नाटे की चीख ।
क्या अब भी
विश्वास नहीं होता
कि सन्नाटे की भी
अपनी एक आवाज होती है ?

- सीमा
१४ मई, १९९७
चा.

7.3.06

होली की शाम

होली के रंगों की शाम,
उमंगों की शाम,
तरंगों की शाम /

याद आ रही है मुझे
अपने गाँव की
होली की शाम /
'होरी' गाती
गावँ के मर्दों की
टोली की शाम /
हर एक चेहरे पर
गुलाल से सजी
रंगोली की शाम /
गुलाल से गुलाबी करने
घर आती
हर सखी-सहेली की शाम /
रंगे हुए चेहेरे को
घूँघट के पीछे छुपाती
दुल्हन नई-नवेली की शाम /

बहारों की शाम,
फुहारों की शाम,
मस्ती की शाम,
सुस्ती की शाम /
याद आ रही है मुझे
अपने गाँव की
होली की शाम /

- सीमा
२३ मार्च, १९९७, ब.व.
(होलिका-दहन)

1.3.06

रिश्ता

तुम्हारे और मेरे बीच
आँसुओं का रिश्ता है,
दर्द की एक डोर है
जो बाँधे हुए है
हम दोनों को /
दर्द से सभी डरते हैं,
सभी दूर भागते हैं
फिर भी
जाने क्यों
यही दर्द,
यही पीडा
हम दोनों को
जोडे हुए है
एक दूसरे से,
इस समस्त सृष्टी से /

आपस में
छोटे-छोटे दर्द बाँटकर
यह डोर और मजबूत हो जाती है
पर
दर्द से सभी डरते हैं
शायद तुम भी
और मैं भी
तभी आपस में
दर्द का बाँटना
कम होता गया
और हमारे बीच की डोर
हमारे बीच के
फासले को नापती हुई
ज्यों की त्यों
तनी हुई है /

-सीमा
१९ दिसम्बर, १९९६
ब.व.

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